भोला महतो ने पहली स्त्री के मर जाने बाद दूसरी सगाई की, तो उसके लड़के रग्घू के लिए बुरे दिन आ गए। रग्घू की उम्र उस समय केवल दस वर्ष की थी। चैने से गॉँव में गुल्ली-डंडा खेलता फिरता था। मॉँ के आते ही चक्की में जुतना पड़ा। पन्ना रुपवती स्त्री थी और रुप और […]
प्रेमचन्द की कहानी बूढ़ी काकी 1918 में उर्दू में लिखी गई तथा उर्दू की पत्रिका तहज़ीबे निसवाँ में छपी। तदन्तर यही कहानी हिन्दी में रूपान्तरित हो 1921 में ‘श्रीशारदा’ नामक हिन्दी पत्रिका में छपी थी। बुढ़ापा बहुधा बचपन का पुनरागमन हुआ करता है। बूढ़ी काकी में जिह्वा –स्वाद के सिवा और कोई चेष्टा शेष न […]
1924 में पहली बार माधुरी में प्रकाशित ‘शतरंज के खिलाड़ी’ वाजिदअली शाह के समय के अवध की अनूठी दास्ताँ है. 1977 में सत्यजित राय ने इस कहानी पर इसी नाम से फिल्म भी बनाई . फिल्म में संजीव कुमार और सईद ज़ाफरी ने मुख्य भूमिकाएं निभाई. इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक सहित तीन फिल्मफेयर पुरस्कार […]
हरिधन जेठ की दुपहरी में ऊख में पानी देकर आया और बाहर बैठा रहा। घर में से धुआँ उठता नजर आता था। छन-छन की आवाज भी आ रही थी। उसके दोनों साले उसके बाद आये और घर में चले गए। दोनों सालों के लड़के भी आये और उसी तरह अंदर दाखिल हो गये; पर […]
विद्यार्थी-परीक्षा में फेल होकर रोते हैं, सर्वदयाल पास होकर रोये। जब तक पढ़ते थे, तब तक कोई चिंता नहीं थी; खाते थे; दूध पीते थे। अच्छे-अच्छे कपड़े पहनते, तड़क-भड़क से रहते थे। उनके माता-पिता इस योग्य न थे कि कालेज के खर्च सह सकें, परंतु उनके मामा एक ऊँचे पद पर नियुक्त थे। उन्होंने चार […]
सद्गति प्रेमचंद की चर्चित कहानियों में से एक है. शोषक ब्राह्मणवादी व्यवस्था किस प्रकार लोगों को अपनी मानसिक गुलामी का शिकार बनाती है , इसका मार्मिक चित्रण प्रेमचंद ने सद्गति में किया है. 1981 में सत्यजित राय ने इस कहानी को आधार बना कर इसी नाम से एक फिल्म भी बनायी , जिसमें ओम पुरी […]
बेनीमाधव सिंह गौरीपुर गाँव के जमींदार और नम्बरदार थे। उनके पितामह किसी समय बड़े धन-धान्य संपन्न थे। गाँव का पक्का तालाब और मंदिर जिनकी अब मरम्मत भी मुश्किल थी, उन्हीं की कीर्ति-स्तंभ थे। कहते हैं, इस दरवाजे पर हाथी झूमता था, अब उसकी जगह एक बूढ़ी भैंस थी, जिसके शरीर में अस्थि-पंजर के सिवा और […]
प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी अपनी रचना ‘प्रेमचंद घर में’ के लिए चर्चित रही हैं , पर शायद कई लोगों को यह न पता हो कि वे अपने समय की चर्चित कथाकार भी रही हैं . प्रस्तुत है , उनकी कहानी ‘कप्तान’ ज़ोरावर सिंह की जिस दिन शादी हुई, बहू आई, उसी रोज़ ज़ोरावर सिंह […]
मुल्के जन्नतनिशॉँ के इतिहास में वह अँधेरा वक्त था जब शाह किशवर की फतहों की बाढ़ बड़े जोर-शोर के साथ उस पर आयी। सारा देश तबाह हो गया। आजादी की इमारतें ढह गयीं और जानोमाल के लाले पड़ गए। शाह बामुराद खूब जी तोड़कर लड़ा, खूब बहादुरी का सबूत दिया और अपने खानदान के तीन […]