जैनेंद्र कुमार आज तीसरा रोज़ है. तीसरा नहीं, चौथा रोज़ है. वह इतवार की छुट्टी का दिन था. सबेरे उठा और कमरे से बाहर की ओर झांका तो देखता हूं, मुहल्ले के एक मकान की छत पर कांओं-कांओं करते हुए कौओं से घिरी हुई एक लड़की खड़ी है. खड़ी-खड़ी बुला रही है, “कौओ आओ, कौओ […]
अगर मैं गोदान लिखता? लेकिन निश्चय है मैं नहीं लिख सकता था, लिखने की सोच भी नहीं सकता था। पहला कारण कि मैं प्रेमचंद नहीं हूँ, और अंतिम कारण भी यही कि प्रेमचंद मैं नहीं हूँ। वह साहस नहीं, वह विस्तार नहीं। गोदान आसपास ५०० पृष्ठों का उपन्यास है। उसके लिए धारणा में ज्यादा […]