बेनीमाधव सिंह गौरीपुर गाँव के जमींदार और नम्बरदार थे। उनके पितामह किसी समय बड़े धन-धान्य संपन्न थे। गाँव का पक्का तालाब और मंदिर जिनकी अब मरम्मत भी मुश्किल थी, उन्हीं की कीर्ति-स्तंभ थे। कहते हैं, इस दरवाजे पर हाथी झूमता था, अब उसकी जगह एक बूढ़ी भैंस थी, जिसके शरीर में अस्थि-पंजर के सिवा और […]
मुल्के जन्नतनिशॉँ के इतिहास में वह अँधेरा वक्त था जब शाह किशवर की फतहों की बाढ़ बड़े जोर-शोर के साथ उस पर आयी। सारा देश तबाह हो गया। आजादी की इमारतें ढह गयीं और जानोमाल के लाले पड़ गए। शाह बामुराद खूब जी तोड़कर लड़ा, खूब बहादुरी का सबूत दिया और अपने खानदान के तीन […]
रमजान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आयी है। कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभाव है। वृक्षों पर अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है। आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है, यानी संसार को ईद की बधाई दे रहा है। गॉंव में कितनी हलचल है। ईदगाह जाने की तैयारियॉँ हो […]
स्त्री – मैं वास्तव में अभागिन हूँ, नहीं तो क्या मुझे नित्य ऐसे-ऐसे घृणित दृश्य देखने पड़ते ! शोक की बात यह है कि वे मुझे केवल देखने ही नहीं पड़ते, वरन् दुर्भाग्य ने उन्हें मेरे जीवन का मुख्य भाग बना दिया है। मैं उस सुपात्र ब्राह्मण की कन्या हूँ, जिसकी व्यवस्था बड़े-बड़े गहन धार्मिक विषयों […]
प्रेमचंद की कहानी फ़ातिहा पहली बार 1929 ई में ‘पांच फूल’ कहानी संकलन में प्रकाशित हुई . सरकारी अनाथालय से निकलकर मैं सीधा फौज में भरती किया गया। मेरा शरीर हृष्ट-पुष्ट और बलिष्ठ था। साधारण मनुष्यों की अपेक्षा मेरे हाथ-पैर कहीं लम्बे और स्नायुयुक्त थे। मेरी लम्बाई पूरी छह फुट नौ इंच थी। पलटन […]
आत्माराम उर्दू पत्रिका ‘ज़माना’ में 1920 में पहली बार प्रकाशित हुई . 1921 में ‘प्रेम पचीसी’ में इसका हिंदी रूप प्रकाशित हुआ. वेदी-ग्राम में महादेव सोनार एक सुविख्यात आदमी था। वह अपने सायबान में प्रातः से संध्या तक अँगीठी के सामने बैठा हुआ खटखट किया करता था। यह लगातार ध्वनि सुनने के लोग इतने अभ्यस्त […]
‘नमक का दारोगा’ प्रेमचंद की चर्चित कहानियों में से एक है . सर्वप्रथम यह कहानी अक्टूबर 1913 के ‘हमदर्द’ में उर्दू में प्रकाशित हुई थी . हिंदी में पहली बार यह 1917 में प्रेमचंद के कहानी संकलन ‘सप्त सरोज’ में प्रकाशित हुई .सच्चाई और ईमानदारी जैसे नैतिक मूल्यों को स्थापित करती यह कहानी मन पर […]
पण्डित मोटेराम जी शास्त्री को कौन नहीं जानता? आप अधिकारियों का रूख देखकर काम करते हैं। स्वदेशी आन्दोलन के दिनों में आपने उस आन्दोलन का खूब विरोध किया था। स्वराज्य आन्दोलन के दिनों में भी आपने अधिकारियों से राजभक्ति की सनद हासिल की थी। मगर जब इतनी उछल-कूद पर उनकी तक़दीर की मीठी नींद न […]
सोज़े वतन यानि देश का दर्द …नवाब राय के इस इस कहानी संग्रह की सारी कहानियों में क्रांति की जो चिंगारी थी , उसने अंग्रेजी हुकूमत को विवश किया इस पर प्रतिबंध लगाने के लिए और नवाब राय को विवश किया प्रेमचंद बनने के लिए. उसी संग्रह की एक और कहानी ….. आज पूरे साठ […]