पंडित मोटेराम शास्त्री ने अंदर जा कर अपने विशाल उदर पर हाथ फेरते हुए यह पद पंचम स्वर में गया, अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम, दास मलूका कह गये, सबके दाता राम ! सोना ने प्रफुल्लित हो कर पूछा, ‘ कोई मीठी ताजी खबर है क्या ? ‘ शास्त्री जी ने पैंतरे […]
हमारे अँग्रेजी दोस्त मानें या न मानें, मैं तो यही कहूँगा कि गुल्ली-डंडा सब खेलों का राजा है. अब भी कभी लड़कों को गुल्ली-डंडा खेलते देखता हूँ, तो जी लोट-पोट हो जाता है कि इनके साथ जाकर खेलने लगूँ. न लान की जरूरत, न कोर्ट की, न नेट की, न थापी की. मजे से किसी पेड़ से एक टहनी […]
हमारी देह पुरानी है, लेकिन इसमें सदैव नया रक्त दौड़ता रहता है। नये रक्त के प्रवाह पर ही हमारे जीवन का आधार है। पृथ्वी की इस चिरन्तन व्यवस्था में यह नयापन उसके एक-एक अणु में, एक-एक कण में, तार में बसे हुए स्वरों की भाँति, गूँजता रहता है और यह सौ साल की बुढ़िया आज […]
अब बड़े-बड़े शहरों में दाइयाँ, नर्सें और लेडी डाक्टर, सभी पैदा हो गयी हैं; लेकिन देहातों में जच्चेखानों पर अभी तक भंगिनों का ही प्रभुत्व है और निकट भविष्य में इसमें कोई तब्दीली होने की आशा नहीं. बाबू महेशनाथ अपने गाँव के जमींदार थे, शिक्षित थे और जच्चेखानों में सुधार की आवश्यकता को मानते थे, […]
भोला महतो ने पहली स्त्री के मर जाने बाद दूसरी सगाई की, तो उसके लड़के रग्घू के लिए बुरे दिन आ गए। रग्घू की उम्र उस समय केवल दस वर्ष की थी। चैने से गॉँव में गुल्ली-डंडा खेलता फिरता था। मॉँ के आते ही चक्की में जुतना पड़ा। पन्ना रुपवती स्त्री थी और रुप और […]
प्रेमचन्द की कहानी बूढ़ी काकी 1918 में उर्दू में लिखी गई तथा उर्दू की पत्रिका तहज़ीबे निसवाँ में छपी। तदन्तर यही कहानी हिन्दी में रूपान्तरित हो 1921 में ‘श्रीशारदा’ नामक हिन्दी पत्रिका में छपी थी। बुढ़ापा बहुधा बचपन का पुनरागमन हुआ करता है। बूढ़ी काकी में जिह्वा –स्वाद के सिवा और कोई चेष्टा शेष न […]
1924 में पहली बार माधुरी में प्रकाशित ‘शतरंज के खिलाड़ी’ वाजिदअली शाह के समय के अवध की अनूठी दास्ताँ है. 1977 में सत्यजित राय ने इस कहानी पर इसी नाम से फिल्म भी बनाई . फिल्म में संजीव कुमार और सईद ज़ाफरी ने मुख्य भूमिकाएं निभाई. इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक सहित तीन फिल्मफेयर पुरस्कार […]
हरिधन जेठ की दुपहरी में ऊख में पानी देकर आया और बाहर बैठा रहा। घर में से धुआँ उठता नजर आता था। छन-छन की आवाज भी आ रही थी। उसके दोनों साले उसके बाद आये और घर में चले गए। दोनों सालों के लड़के भी आये और उसी तरह अंदर दाखिल हो गये; पर […]
सद्गति प्रेमचंद की चर्चित कहानियों में से एक है. शोषक ब्राह्मणवादी व्यवस्था किस प्रकार लोगों को अपनी मानसिक गुलामी का शिकार बनाती है , इसका मार्मिक चित्रण प्रेमचंद ने सद्गति में किया है. 1981 में सत्यजित राय ने इस कहानी को आधार बना कर इसी नाम से एक फिल्म भी बनायी , जिसमें ओम पुरी […]