आधी रात का समय है। चारों तरफ अंधेरी छाई हुई है। आसमान पर काली घटा रहने के कारण तारों की रोशनी भी जमीन तक नहीं पहुँचती। जरा-जरा बूंदा-बूंदी हो रही है, मगर वह हवा के झपेटों के कारण मालूम नहीं होती। हरिपुर में चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है। ऐसे समय में दो आदमी स्याह […]
घटाटोप अंधेरी छाई हुई है, रात आधी से ज्यादा जा चुकी है, बादल गरज रहे हैं, बिजली चमक रही है, मूसलाधार पानी बरस रहा है, सड़क पर बित्ता-बित्ता-भर पानी चढ़ गया है, राह में कोई मुसाफिर चलता हुआ नहीं दिखाई देता। ऐसे समय में एक आदमी अपनी गोद में तीन वर्ष का लड़का लिए और […]
दूसरे दिन शाम को खण्डहर के सामने घास की सब्जी पर बैठे हुए बीरसिंह और नाहरसिंह आपस में बातें कर रहे हैं! सूर्य अस्त हो चुका है, सिर्फ उसकी लालिमा आसमान पर फैली हुई है। हवा के झोंके बादल के छोटे-छोटे टुकड़ों को आसमान पर उड़ाये लिए जा रहे हैं। ठंडी-ठंडी हवा जंगली पत्तों को […]
किनारे पर जब केवल नाहरसिंह और बीरसिंह रह गए तब नाहरसिंह ने वह चीठी पढ़ी, जो रामदास की कमर से निकली थी। उसमें यह लिखा हुआ था: मेरे प्यारे दोस्त, अपने लड़के के मारने का इल्जाम लगा कर मैंने बीरसिंह को कैदखाने में भेज दिया। अब एक-ही-दो दिन में उसे फांसी देकर आराम की नींद […]
बेचारे बीरसिंह कैदखाने में पड़े सड़ रहे हैं। रात की बात ही निराली है, इस भयानक कैदखाने में दिन को भी अंधेरा ही रहता है; यह कैदखाना एक तहखाने के तौर पर बना हुआ है, जिसके चारों तरफ की दीवारें पक्की और मजबूत हैं। किले से एक मील की दूरी पर जो कैदखाना था और […]
ऊपर लिखी वारदात के तीसरे दिन आधी रात के समय बीरसिंह के बाग में उसी अंगूर की टट्टी के पास एक लंबे कद का आदमी स्याह कपड़े पहिरे इधर-से-उधर टहल रहा है। आज इस बाग में रौनक नहीं, बारहदरी में लौंडियों और सखियों की चहल-पहल नहीं, सजावट को तो जाने दीजिये, कहीं एक चिराग तक […]
आसमान पर सुबह की सुफेदी छा चुकी थी जब लाश लिए हुए बीरसिंह किले में पहुंचा । वह अपने हाथों पर कुंअर साहब की लाश उठाये हुए था। किले के अन्दर की रिआया तो आराम में थी, केवल थोड़े-से बुड्ढे, जिन्हें खांसी ने तंग कर रक्खा था, जाग रहे थे और इस उद्योग में थे […]
बीरसिंह तारा से विदा होकर बाग के बाहर निकला और सड़क पर पहुंचा। इस सड़क के किनारे बड़े-बड़े नीम के पेड़ थे, जिनकी डालियों के ऊपर जाकर आपस में मिले रहने के कारण, सड़क पर पूरा अंधेरा था। एक तो अंधेरी रात, दूसरे बदली छाई हुई, तीसरे दुपट्टी घने पेड़ों की छाया ने पूरा अन्धकार […]
लोग कहते हैं कि नेकी का बदला नेक और बदी का बदला बद से मिलता. है मगर नहीं, देखो, आज मैं किसी नेक और पतिव्रता स्त्री के साथ बदी किया चाहता हूँ। अगर मैं अपना काम पूरा कर सका तो कल ही राजा का दीवान हो जाऊँगा। फिर कौन कह सकेगा कि बदी करने वाला […]