रात देर तक जागना और देर रात जाग जाना बड़ा भयंकर अंतर है दोनों परिस्थितियों में, पहली में जहां आप अपनी मर्ज़ी से जाग रहे हैं और वक़्त बिता रहे हैं मनपसंद कामों में किसी फ़िल्म या किताब या किसी की बातों में डूबे सुनहले भविष्य का सपना बुनते ख़ुश – ख़ुश जाग रहे होते […]
सूरज की आंखों में ढीठ बनकर देखते मुद्राओं की गर्मी पर बाजरे की रोटी सेकते हम चाह लेते तो दोनों पलड़े बराबर कर तुम्हारी अनंत चाहतों से अपने सारे हक तौलते सिले हुए होंठ और कटी ज़ुबान से बोलते हम चाह लेते तो पोखरे के गंदले पानी में आसमानी सितारे घोलते!
जमाने की प्रेम – पाठशाला जब गुलाबों के बगीचे में लगा करती थी, मेरी कविता तब बूढ़ी नदी पर बने टूटे हुए पुल पर बैठ झरबेरी के फल खाया करती थी, और अब तुम्हारे घिसे – पुराने प्रेम की महापुरानी लालटेन इसकी नई गुलेल के निशाने पर है!
चित्रकार की सी सुरुचि से, जो गुड़हल के दो फूल मेरे स्याह बालों में टांक देता है, प्रेम की सुबह में ये कोमल से सुंदर मनमोहक भाव जीवन की दोपहरी में जलते तपते सूरज से किस तरह लड़ते हैं.. आश्चर्य !! गुड़हल का शिरीष हो जाना, कलाकार का सिपाही हो जाना, प्रेमी का पिता हो […]