September 12, 2020 टूटे तारे ख़ान इशरत परवेज़ 1 “क्या लाऊँ, साहब?” बड़ी ही नम्रता से उसने पूछा. मैने सुबह के अखबार पर नज़र गड़ाए हुए ही कहा, “चाय…. एक चाय ले आओ, और हाँ, जरा कड़क रखना.” वह फुर्ती से चला गया. कई घण्टे लगातार काम करने से उत्पन्न तनाव और दिसंबर की ठिठुरन के चलते मैं आफिस […] और पढ़ें