हत्या या आत्महत्या? #२
हम आने वाले लेखों में आपको कुछ ऐसी आवशयक और विशेष जानकारी के बारे में बताएँगे जिसके जरिये यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है – वह अपराध जिसके दौरान किसी इंसान की मृत्यु हुई, वह हत्या थी या आत्महत्या। हम आपको हथियार, उनके प्रयोग और हथियार के चयन से व्यक्ति के बारे में निष्कर्ष निकालने के सम्बन्ध में बताएँगे, जिससे आप उस बिंदु तक पहुँच सकते हैं, उस महीन धागे तक पहुँच सकते हैं, जो हत्या और आत्महत्या को अलग-अलग भागों में बांटता है। आप जान पायेंगे कि कैसे किसी अपराध कथा का नायक, इन बिन्दुओं के सहारे, अपराध की गुत्थी को सुलझाने में सफल हो पाता है।
आगे बढ़ने से पहले हम यह जरूर जान लें की इस प्रकार की घटनाओं को जिसमे किसी इन्सान की मौत असामान्य रूप से होती है, उसे पुलिस या डिटेक्टिव प्रोसीजर के तहत चार भागों में बांटा जाता है जो निम्न हैं:-
हत्या/क़त्ल (Murder) – जब कोई किसी को जानबूझकर और सोच समझकर इस हद तक आघात पहुचाये या शारीरिक क्षति पहुचाये जिस से पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु हो जाए तो वो हत्या कहलाता है ।
हत्या (ग़ैरइरादतन) (Manslaughter) – जब कोई अचानक बगैर किसी इरादे के और बगैर सोचे समझे अमानवीय भावनाओं के अधीन होकर किसी को इस हद तक क्षति पंहुचाये की पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु हो जाये तो उसे ग़ैरइरादतन क़त्ल कहते हैं ।
आत्मरक्षा (self defence) – जब किसी से किसी अन्य व्यक्ति की हत्या, उसके द्वारा किये गए आक्रमण या हत्या के प्रयत्नों से स्वयं की या अपने परिवार की रक्षा करते हुए हो जाती है, तो इसे आत्मरक्षा हेतु हुई हत्या का केस माना जाता है ।
आत्मह्त्या (Su।c।de) – जब कोई मानसिक तौर पर दुर्बल होकर अपने अंतर-दबावों के अधीन होकर जानते-बूझते सोच-समझकर स्वयं की जान दे देता है तो उसे आत्महत्या कहते हैं ।
ये सारी परिभाषाएं आम परिभाषाएं हैं जो अपनी दी गयीं परिभाषाओं में सीमाबद्ध हैं, परन्तु ये सीमायें कभी-कभी दुर्घटनावश या कभी-कभी अपनी प्रतीति में अतिक्रमित होती हुई दिख सकती हैं । उदाहरण के तौर पर, कोई भी हत्या इस तरह दर्शाई जा सकती है की देखने में वो पहली दफ़ा आत्महत्या जैसी दिखे। उसी तरह ग़ैरइरादतन हुई हत्या को हत्या सिद्ध किया जा सकता है, यदि पर्याप्त प्रमाण, उद्देश्य और हत्या का इरादा होना सिद्ध किया जा सके । यदि प्रतिपक्षी बहुत ही धूर्त और चतुर है तो वो आत्महत्या को इस तरह से दर्शा सकता है की पहली बार देखने पर वो हत्या का केस लगे ।
नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के रिकार्ड्स के अनुसार सन २००५ से सन २०१५ के बीच देश में, आत्महत्या के केसेस में १७.३% की वृद्धि हुई थी| सन २०११ तक इसमें वृद्धि होती रही लेकिन उसके बाद इसमें गिरावट आई| अगर NCRB के डाटा को देखा जाए तो पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु को पीछे छोड़ते हुए महाराष्ट्र में सबसे अधिक आत्महत्या को रिपोर्ट किया गया था| हालाँकि इन आत्महत्याओं के जो कारण रिपोर्ट्स की समरी में दर्ज हैं – वे – व्यावसायिक समस्याएं, भेदभाव, अलग होने का भाव, एब्यूज, हिंसा, पारिवारिक समस्याएं, मानसिक विकार, शराब की आदत, आर्थिक नुकसान आदि हैं| भारत में किसी भी असामयिक, असामान्य एवं अप्राकृतिक मृत्यु वाले केस को बियॉन्ड द फ़ाउल प्ले जाकर ही आत्महत्या साबित किया जाता है|
नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के २०१५ के डाटा को देखा जाए तो भारत में, सन २०१५ में ३२१२७ मर्डर के केस रजिस्टर्ड हुए हैं, जबकि यही आंकड़ा सन २०१४ में ३३९८१ पर था| भारत में जो हिंसा की घटनाएं होती हैं, उनपर मीडिया हाउसेस उतना ध्यान नहीं देती| मीडिया में तो मर्डर से जैसे अपराध की आवाज़, आतंकवाद नीचे दब जाती है| जबकि अगर सन २०१२ के आंकड़ों को देखें तो आतंकवादी गतिविधियों में लगभग २५२ लोगों की जानें गयी जबकि उस वर्ष ३४४३४ मर्डर रिपोर्ट किये गए| आशा है, यह आंकडा आपको बहुत कुछ समझा जात है| सन २०१५ में, सिर्फ फायर-आर्म्स से होने वाली हत्याओं की संख्या ही ७४४४ है|