चंद्रकांता-सम्पूर्ण
हिन्दी के आरंभिक उपन्यासों में देवकीनंदन खत्री की चंद्रकांता अग्रगण्य है। यह उपन्यास पहली बार 1893 में प्रकाशित हुआ था। कहते हैं, इस उपन्यास को पढ़ने के लिए बहुत से लोगों ने देवनागरी सीखी। तिलिस्मी-अय्यारी की रहस्यमय और रोमांचक दुनिया की सैर कराने वाला यह उपन्यास आज भी उतना ही लोकप्रिय है। न सिर्फ इस उपन्यास पर धारावाहिक का निर्माण हुआ, बल्कि वेदप्रकाश शर्मा और ओमप्रकाश शर्मा जैसे लुगदी साहित्य के लेखकों ने इसे आधार बनाकर उपन्यासों की पूरी शृंखला लिखी।
इस उपन्यास को एक प्रेम कथा कहा जा सकता है। विजयगढ़ की राजकुमारी चंद्रकांता और नौगढ़ के राजकुमार वीरेन्द्र सिंह एक-दूसरे से प्रेम करते हैं, लेकिन उनके परिवारों में दुश्मनी है। दुश्मनी का कारण है कि विजयगढ़ के महाराज जयसिंह नौगढ़ के राजा सुरेन्द्र सिंह को अपने भाई की हत्या का जिम्मेदार मानते है। हालांकि इसका जिम्मेदार विजयगढ़ का महामंत्री क्रूर सिंह है, जो चंद्रकांता से शादी करने और विजयगढ़ का महाराज बनने का सपना देख रहा है। राजकुमारी चंद्रकांता और राजकुमार वीरेन्द्र सिंह की प्रमुख कथा के साथ साथ ऐयार तेजसिंह तथा ऐयारा चपला की प्रेम कहानी भी चलती रहती है। कथा का अंत नौगढ़ के राजकुमार वीरेन्द्र सिंह तथा विजयगढ़ की राजकुमारी चन्द्रकांता के परिणय से होता है।
चंद्रकांता अध्याय – 1
चंद्रकांता अध्याय – 2
चंद्रकांता अध्याय – 3
चंद्रकांता अध्याय – 4