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10 Comments

  1. सुल्तान अरोरा
    April 2, 2017 @ 7:57 am

    मेरे ख्याल से तो चोरी मालविका परिदा ने की हो सकती है।कम से कम राजेश चोर नही हो सकता

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  2. Gurpreet Singh
    April 4, 2017 @ 6:08 am

    यह प्रतियोगिता बहुत ही अच्छी है। यहाँ प्रतिभागियों को अपनी लेखनी की क्षमता दिखाने का भरपूर मौका मिलता है।
    धन्यवाद

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  3. Anand Kumar Singh
    April 4, 2017 @ 9:42 am

    अनिल शर्मा की बात सुनकर कमरे में सन्नाटा छा गया। सभी अवाक रह गये। किसी के मुंह से कोई बात नहीं निकल रही थी।
    धर्मपाल ने चौंक कर अनिल शर्मा को देखा और बोला, ‘क्या साहब, क्या कह रहे हैं, आपको चोर का पता भी चल गया?‘
    ‘हां बिल्कुल, यूं ही हमारा नाम अनिल शर्मा थोड़े ही है। आज तुझे भी पता चलेगा कि तेरे साहब का दिमाग कितना जोर चलता है।’
    ‘तो सर बताइये न’ धर्मपाल ने कहा। यह सुनकर अनिल शर्मा मुस्कुराया। अब तक उससे तू-तड़ाक की भाषा और कभी-कभार साहब कहकर संबोधित करने वाला धर्मपाल अब उसे सर कह रहा था।
    लेकिन तबतक देबीप्रसाद परिदा बोल उठा, ‘अरे साहब अगर आपको पता है कि चोर कौन है और मेरी नंदी कहां है तो बताइये न। इतनी घनघोर बारिश में हम सभी का वक्त क्यों खराब कर रहे हैं?’
    अनिल शर्मा तत्काल गंभीर हुआ, ‘ घनघोर बारिश? जी हां बारिश। देबीप्रसाद जी, इस बारिश ने ही आपकी नंदी का पता बताया है। आपको पता नहीं कि ये बारिश आपके कितने काम आई है। वरना चोर ने इतनी शातिर चाल चली थी कि उसे कामयाबी जरूर मिलती। भला हो दिल्ली की बारिश का, सॉरी, घनघोर बारिश का।’
    तबतक रेस्तरां का मैनेजर, राजेश मखीजा और मालविका परिदा अपने-अपने अचंभे से बाहर आ गये थे। मालविका ने कहा, ‘ सर तो बताइये न कहां है नंदी, कौन है चोर?’
    अनिल शर्मा ने कहा, ‘ मैडम चोर वो है जिसके पास चोरी का मौका और उद्देश्य था। बारिश की वजह से जो हालात पैदा हुए उस स्थिति में कोई और चोर हो ही नहीं सकता था।’
    ‘हां तो कौन है चोर, बताइये न’, मालविका अधैर्य हो रही थी।
    ‘अरे मैडम आप ये पूछ रही हैं। आपको तो अच्छी तरह पता होना चाहिए’ अनिल शर्मा ने मजे लेते हुए कहा।
    ‘मुझे क्यों’, मालविका की आवाज तेज हो गयी थी।
    ‘क्योंकि चोरी का पता तो सबसे पहले चोर को होता है न। है कि नहीं’ दार्शनिक के अंदाज में अनिल शर्मा ने कहा।
    ‘क्या कह रहे आप’ मालविका चिल्लाई। ‘ आप मुझे चोर कह रहे हैं। आप पागल तो नहीं हो गये। अपने ही घर में मैं भला क्यों चोरी करूंगी।’
    ‘ पैसा। पैसा ही वह वजह है जिसके लिए दुनिया भर में सबसे ज्यादा क्राइम होते हैं। आपने बीमे की रकम के लिए के लिए इस चोरी को अंजाम दिया। लेकिन आपको ये मुगालता हो गया था कि हम पुलिसवाले बेवकूफ हैं और आप आसानी से अपनी करतूत से लाभ हासिल कर लेंगी।’
    देबीप्रसाद ने कहा, ‘ मिस्टर आप मेरे ही घर में मेरी ही बीवी को चोर ठहरा रहे हैं। आखिर आप कैसे कह सकते हैं कि नंदी की चोरी मालविका ने की है।’
    ‘बिल्कुल आसानी से, देखिये, नंदी की मूर्ति आपके घर में आपकी आलमारी में रखी थी। मूसलाधार बारिश के बीच राजेश मखीजा चाइनीज खाना लेकर आया। इसके बाद राजेश चला जाता है। मालविका कहती है कि फिल्म देखकर वह ड्राइंगरूम में आई और दरवाजा खुला देखा, फिर उसने आलमारी चेक की और एक मूर्ति, नंदी की मूर्ति, को गायब पाया।‘
    ‘तो क्या खराबी है इस बयान में?’ देबीप्रसाद ने कहा।
    ‘खराबी तो कुछ नहीं बस एक गलती हो गयी कि बारिश हो गयी। दरअसल इस मूसलाधार बारिश में जब हम घर में आये तो हमारे कमरे में घुसने से पहले घर बिल्कुल साफ-सुथरा था। हमारे घुसने पर ही हमारे जूते, रेनकोट वगैरह से घर में पानी-कीचड़ वगैरह से निशान बने। लेकिन ऐसे निशान तो हमारे आने से पहले तो बिल्कुल नहीं थे। घर बिल्कुल साफ था। यानी बाहर का कोई आदमी घर में प्रवेश कर ही नहीं सकता। या तो व्हीलचेयर पर बैठे आपने, मिस्टर देबीप्रसाद, आपने चोरी की या फिर चल फिर सकने लायक आपकी पत्नी ने।’
    ‘ये भी तो हो सकता है कि दरवाजा सचमुच खुला था, बाहर के किसी आदमी ने न सही, हमारी बिल्डिंग के किसी आदमी ने चोरी की, जो भीगा न हो।’ देबीप्रसाद का बीवी को बचाना जारी था।
    ‘जी वो संभावना तो मालविका जी ने पहले ही खारिज कर दी। उन्होंने कहा है कि दुनिया में किसी तीसरे से उनका कोई संबंध ही नहीं था। मूर्तियों के कीमती होने की बात केवल इसके जानकार ही जान सकते हैं। यानी किसी जानकार ने चोरी की। लेकिन जानकार ने सबसे कीमती नटराज की मूर्ति नहीं चुरायी जिससे उसे और अधिक पैसे मिलते। क्योंकि नटराज की मूर्ति का बीमा नहीं था। उसने चुरायी तो केवल वह मूर्ति जिसका बीमा 30 करोड़ रुपये का था।’
    तबतक थाने से इंस्पेक्टर लाव-लश्कर के साथ फ्लैट में पहुंच चुका था। कुछ ही देर में उसने अनिल शर्मा से सारी जानकारी हासिल कर ली। मालविका सिर झुकाकर कुर्सी पर बैठ गयी थी। देबीप्रसाद की उम्र कुछ ही देर में मानों कई साल बढ़ गयी थी।’
    धर्मपाल झिझकता हुआ अनिल शर्मा के पास जाकर फुसफुसाया, ‘लेकिन साहब मालविका ने ये ड्रामा क्यों रचा। पैसे के लिए वो मूर्तियां बेच भी सकती थी।’
    ‘भाई वो जानती थी कि देबीप्रसाद कभी भी मूर्तियों को बेचने के लिए राजी नहीं होगा। मूर्तियां ही बेचनी रहती तो ऐसी हालत में वो रहता ही क्यों, पहले ही न बेच देता। ’
    ‘लेकिन मालविका नटराज की मूर्ति भी चुरा सकती थी। उसे बेचती तो काफी पैसे मिलते’
    ‘ अरे इतनी कीमती मूर्ति बेचना हंसी-खेल नहीं। इसके लिए बड़े अपराधियों, अंडरवर्ल्ड, तस्करों आदि से संबंध होना जरूरी है। मालविका कैसे करती ये सब। उसने आसान रास्ता चुना। मूर्ति गायब करके बीमे की रकम हासिल करना और अपनी आर्थिक दुश्वारियों से निजात पाना।’
    ‘लेकिन साहब अब क्या होगा? मालविका क्या गिरफ्तार होगी?’
    ‘पता नहीं, शायद देबीप्रसाद अपनी शिकायत वापस ले लें। शायद गिरफ्तार हो भी जाये मालविका। लेकिन हमलोगों को इससे क्या। हमारी ड्यूटी तो खत्म हो गयी। अब चलो भाई काफी देर हो गयी। बाकी का काम थानेवाले संभाल ही लेंगे। चौरसिया की दुकान पर चलते हैं। इतनी रात गये कश का इंतजाम तो वही भला आदमी कर सकता है।’
    ‘जी साहब, सही कहा’ धर्मपाल ने अदब से कहा।
    दोनों इंस्पेक्टर से विदा लेकर लिफ्ट की ओर बढ़ गये।

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  4. rtg009
    April 5, 2017 @ 12:58 pm

    good story

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  5. rtg009
    April 7, 2017 @ 1:53 pm

    देबिप्रसाद परिदा ही क़ातिल है

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  6. jiten poptani
    April 9, 2017 @ 10:45 am

    devi prasad parida tangi ke duor se gujar raha h insurance ki rakam ke liye Japan boojh kar chari ka natak kiya gaya h…

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  7. Manish Khandelwal
    April 9, 2017 @ 1:47 pm

    नंदी की चोरी – फाइनल चैप्टर
    “किसने की है चोरी?” सभी ने लगभग चौंकते हुए पूछा।
    “बताता हूँ एक बार थाने वालों को भी आ जाने दो।” अनिल शर्मा ने ने सभी की और देखते हुए कहा।
    कुछ ही मिनटों में थाने वाले भी आ गये।
    “अरे अनिल तुम यहाँ कैसे?” थाने से आये पुलिस ऑफिसर जो की अनिल शर्मा का पुराना मित्र था ने अनिल को देखते ही कहा।
    “आज पी सी आर पर नाईट ड्यूटी पर था वायरलेस पर चोरी का मेसेज मिला तो तूरंत पहुच गया।”
    “अच्छा बताओ मामला क्या है?”
    “एक कीमती मूर्ति चोरी हुई जिसकी कीमत लगभग 30-40 लाख की थी।” अनिल शर्मा संशिप्त में मामला समझाते हुए कहा।
    “यार ये आज कल चोरो ने नाक में दम कर रखा है, सारी रात इनके पीछे भागते रहो।” थाने से आए पुलिस ऑफिसर ने कहा।
    “तुम चिंता मत करो मामला सुलझ गया है, मैंने पता लगा लिया है चोरी किसने की है।” अनिल शर्मा ने ऑफिसर को दिलासा देते हुए कहा।
    “किसने की है चोरी!” एक बार फिर सभी ने ये सवाल उठाया।
    “दरअसल चोरी हुई ही नहीं है, नंदी की मूर्ति इसी घर में है।”
    “ये क्या कह रहे हो आप?” मालविका ने तेज आवाज में कहा।
    “सही कह रहा हूँ, यहाँ कोई चोरी नहीं हुई है। ये एक सोची समझी साजिश है जिसे अंजाम दिया है मालविका परिदा ने और ये पूरा प्लान और किसी का नहीं बल्कि खुद देबीप्रसाद परिदा का है।”
    “क्या बकवास करते हों! पूरी दुनिया जानती है मैं एक कला प्रेमी हूँ और मैं भला अपने ही आर्टिकल को चुराने का क्यों प्लान बनाऊंगा।” अपनी व्हील चेयर पर घसीट कर आते हुए देबीप्रसाद ने कहा।
    “अभी बताता हूँ देबीप्रसाद जी थोडा सा इत्मिनान रखिये।
    हाँ तो हुआ ये की देबीप्रसाद जी जो की राजा महाराजाओं के खानदान से है को अपने गरीबी के दिन रास नहीं आ रहे थे और अपने आर्टिकल्स को वो बेचना नहीं चाहते थे तो गरीबी से छुटकारा पाने और अपना बुडापा सुधारने के लिये इन्होने ये प्लान बनाया।” अनिल शर्मा ने बोलने शुरू किया।
    “ये पूरा प्लान था इंश्योरेंस कंपनी से पैसे हथियाने का। नंदी की मूर्ति जिसकी कीमत लगभग 30-40 लाख रूपये की थी और उसका इंश्योरेंस कीमत से दस गुना ज्यादा 30 करोड़ का था जबकि सबसे कीमती नटराज की मूर्ति का कोई इंश्योरेंस ही नहीं।”
    “पर तुम इतना दावे के साथ कैसे कह सकते हो?” थाने से आये पुलिस ऑफिसर ने अनिल शर्मा से पूछा।”
    “मालविका जी ने बताया की उस रात सिर्फ होटल से डिलीवरी बॉय खाना देने आया था और खाना लेते वक़्त उन्होंने भूल से दरवाज़ा खुला ही छोड़ दिया था और शायद उसी ने वो मूर्ति चुराई हो।
    आज पूरी रात एक मिनट के लिये भी बारिश नहीं रुकी है और जब हम यहाँ पहुचे तब फर्श एकदम साफ़-सुथरा था और हमारे अन्दर आने से जूतों निशान फर्श पर बन गए थे उसे से पहले कोई और अन्दर आया हो ये मुझे बिलकुल नहीं लगता।
    और जब हमने इंश्योरेंस के पेपर देखे तो उन सब में सबसे ज्यादा प्रीमियम नंदी वाली मूर्ति का था और वो एक ही महीने में खतम भी होने वाला था। देबीप्रसाद जी की मौजूदा हालत को देख कर लगता नहीं कि वो नंदी का अगला इंश्योरेंस प्रीमियम चुकाने की हालत मैं भी है।
    जब मैं देबीप्रसाद के कमरे में गया तो वह खाना वैसा का वैसा रखा था। इतनी रात को खाने का आर्डर भी सिर्फ इसीलिये दिया गया ताकि शक की सुई राजेश मखीजा की और गुमाई जा सके।”
    ये सब सुनकर मालविका सकते में आ गई और देबीप्रसाद के चेहरे पर भी हवाइयां उड़ने लगी।
    “हवलदार इस घर की अच्छी तरह तलाशी लो जब तक मैं मालविका और देबीप्रसाद से पूछताछ करता अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।” पुलिस ऑफिसर ने अपने साथ आये दो हवलदारों को आदेश देते हुए कहा।
    “तो क्या अब हम जा सकते है?” राजेश मखीजा के साथ आए मेनेजर ने पूछा।
    “हाँ अभी आप लोग जा सकते है अगर जरुरत पड़ी तो आपको फिर बुलाया जा सकता है” अनिल शर्मा ने कहा।
    कुछ ही देर में हवलदारों ने नंदी की मूर्ति को ढूंड निकाला। मूर्ति होटल से आये चाइनीज खाने के पैकेट से मिली थी। किसी को शक न हो इसीलिए मूर्ति को मंचूरियन के डब्बे में रख दिया था और मूर्ति का आकार में छोटा होना इसके लिये फायदेमंद रहा।
    थोडा सख्ती से पूछताछ करने पर मालविका टूट गई और उसने अपना गुनाह कबूल कर लिया। अनिल शर्मा की बात सही निकली थी ये पूरा खेल दोनों ने मिलकर इंश्योरेंस का पैसा हथियाने के लिये खेला था।
    नंदी की चोरी का राज दिल्ली पुलिस ने कुछ ही घंटे में सुलझा लिया था। देबीप्रसाद और मालविका को झूठी रिपोर्ट करवाने और इंश्योरेंस कंपनी के खिलाफ साजिश के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया। दिल्ली पुलिस के दिमाग और स्किल पर चढ़ी धुल शायद इस मुसलाधार बारिश में धुल गई थी।

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  8. विनय पाण्डेय (Binay Kumar Pandey)
    April 9, 2017 @ 2:09 pm

    धर्मपाल ने चकित होकर पूछा, “किसने?”
    अनिल शर्मा ने मुसकुराते हुए मालविका परिंदा को देखा, और कहा, “मालविका जी, मूर्ति आप स्वयं पेश करेंगी, या फिर हमें पूरे घर की तलाशी लेनी पड़ेगी? हमें पता है कि मूर्ति अभी घर पर ही है।“
    मालविका पहले चौकी, फिर उसका चेहरा गुस्से में लाल हो गया।
    “आप होश में तो है? आप जानते है कि आप क्या बकवास कर रहे है?”
    “ऐसे बेहूदा इल्जाम लगाने का अंजाम सही नहीं होगा! मेरे नंदी को खोजने कि बजाय यहाँ हम पर ही इल्जाम लगाने का क्या मतलब है?” देवीप्रसाद ने भी अपना गुस्सा जाहिर किया।
    अनिल शर्मा ने देवीप्रसाद को उत्तर देते हुये कहा, “देवीप्रसाद जी, इस मूर्ति का चोर सिर्फ आप और आपकी पत्नी हो सकते है, और कोई नहीं। और जैसा कि आप लोगों ने बताया कि आप मूवी देख रहे थे, यह काम सिर्फ आपकी पत्नी कर सकती थी।“
    तभी थाने से भेजे गए लोग भी पहुँच गए। अनिल शर्मा ने अपना कथन जारी रखा। “आज मूसलाधार बारिश हो रही है। हमारे आते ही यहाँ का फर्श गीला हो गया। पर हमारे आने से पहले एकदम साफ और सूखा था। यदि राजेश मखीजा अंदर आया होता, तो फर्श अवश्य गीला होता। अब इतनी महंगी मूर्ति खोने के बाद आपका ध्यान फर्श साफ करने पर तो नहीं गया होगा। और यदि आपने फर्श साफ किया होता, तो देवीप्रसाद जी को अवश्य पता चलता। क्यों देवीप्रसाद जी?”
    देवीप्रसाद का सर नकारात्मक रूप से हिला, फिर उन्होंने मालविका की ओर देखा, मालविका ने अपनी नजारे झुका ली। उसने सोफ़े के अंदर से नंदी कि मूर्ति निकाल कर अनिल शर्मा को दे दी।
    “मुझे पैसे का लालच नहीं है, पर आज हमारे पास आपके इलाज के लिए पैसे नहीं बचे है। आपकी जिद है कि आप अपनी एक भी वस्तु बेचना नहीं चाहते। मेरे पास सिर्फ यही एक चारा रह गया था। मुझे माफ कर दीजिये। पर यदि जल्दी ही पैसे का इंतजाम नहीं किया गया, तो आप अधिक दिनों तक…..”, कहते कहते उसकी आवाज भर्रा गई।
    चोरी कि रिपोर्ट नहीं लिखी गई, देवीप्रसाद ने राजेश मखीजा और पुलिस से माफी मांग ली थी। उन्होंने स्वयं भी मालविका को माफ कर दिया था। साथ ही अगले दिन अपने पुराने एजेंट से बात कर कुछ एंटिक को बेचने का निश्चय भी कर लिया था। अनिल शर्मा और धर्मपाल वापस अपने अड्डे पर पहुँच चुके थे। बारिश बंद हो चुकी थी, और पूर्व दिशा में हल्की लालिमा उभरने लगी थी। अनिल सिगरेट के कश लगता सोच रहा था कि प्यार में दिल चुराना तो सुना था, पर आज प्यार में मूर्ति चुराना भी देख लिया।
    [कहानी में 2 जगह मूर्ति का मूल्य 30-40 लाख बताया गया है, परंतु इंश्योरेंस 30 करोड़ का बताया गया है। पहले मैंने कहानी का अंत इसके आधार पर बनाने का सोचा था, पर बाद में अलग तरह से लिखा। मुझे नहीं पता कि यह प्रूफ कि गलती से हुआ है, या फिर जानबूझकर।]

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  9. Anand
    April 9, 2017 @ 2:46 pm

    वह इलाका पालम थाने के अंतर्गत आता था। वहाँ से दो हवलदार और थाना इंचार्ज त्‍यागी आए थे। बाहर अभी भी बारिश हो रही थी। सभी ने अपनी-अपनी गीली जैकेटें उतारी और उसी कुर्सी पर रख दीं। अनिल शर्मा ने उनका अभिवादन किया और ड्राइंग रूम में बैठने का इशारा किया।
    वहाँ उन दोनों के अलावा वहाँ हवलदार धर्मपाल, चावला चाइनीज का मैनेजर, डिलीवरी ब्‍वॉय राजेश मखीजा और मालविका भी मौजूद थे।
    अनिल शर्मा ने कहा, “मुझे चोर का अंदाजा हो गया है, लेकिन इससे पहले मैं कुछ सवाल जवाब करना चाहता हूँ… सब के सामने।” और मालविका की ओर मुखातिब हुआ, “आपको कोई ऐतराज तो नहीं?”
    मालविका ने कहा, “मुझे भला क्या ऐतराज हो सकता है?”
    अनिल – “मैं चाहता हूँ कि यहाँ देबीप्रसाद जी मौजूद रहें।” और मालविका की ओर देखा। मालविका इशारा समझ गई और देबीप्रसाद परिदा को लेने अंदर चली गई।
    धर्मपाल फुसफुसाया, “क्या माजरा है? क्या करना चाह रहा है? सीधे चोर का नाम क्यों नहीं बताता? यू मजमा क्यों लगाया सै।”
    अनिल शर्मा ने कहा, “तू तमाशा देख!”
    तब तक मालविका परिदा को व्हीलचेयर पर बाहर ले आई। देबीप्रसाद परिदा के चेहरे पर दुख की लकीरें साफ देखी जा सकती थीं।
    अनिल शर्मा ने शुरूआत की, “मालविका जी, नंदी का इतिहास एक बताएंगी? यह आपके पास कहाँ से आया था?”
    मालविका ने देवीप्रसाद की ओर देखा और कहा, “आपको बता चुकी हूँ कि यह 80 के दशक में झारखंड की कोयले की खदान से निकला था, जिसे बाद में…”
    “आप गलतबयानी कर रही हैं। झारखंड राज्‍य सन 2000 में बना है, जब 80 के दशक में झारखंड अस्तित्‍व में था ही नहीं।” अशोक शर्मा ने विजेता से स्‍वर में कहा, “जब आपने यह बताया तभी मुझे शक हो गया था। आपने दरवाजा खुला होने का अंदेशा जताकर शक की सुई राजेश मखीजा की ओर मोड़ने की कोशिश की, लेकिन राजेश मखीजा सच बोल रहा है। इसने इस कमरे में कदम नहीं रखा। यदि रखा होता, तो बारिश में भीगे जूतों के निशान इस फर्श में जरूर पड़ते, जैसे हमारे पड़े हैं। इसके अलावा कोई और चोर या सेंधमार आता तो पहले इन मूर्तियों के बजाए यहाँ के इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स के सामान चुराता, इस नटराज को चुराता। एक चोर के लिए नटराज अधिक कीमती था, लेकिन नंदी इन सबसे बहुमूल्‍य है, क्‍योंकि उसका इंश्योरेंस 30 करोड़ का है, केवल आपके लिए।”
    मालविका अवाक रह गई, “मैंने? मैंने चुराया है?
    “जी हाँ… आपने तिगुने उम्र वाले रईस व्‍यक्ति से दौलत की आस में शादी की, लेकिन आपको मुफलिसी के दरवाजे पर खड़ा एक बीमार आदमी मिला। आपने कोशिश की, कि एंटीक कलेक्‍शन की मूर्तियों को बेचकर चार पैसे आ जाएँ, पर उसमें भी कामयाब न हुईं और जान लिया कि देबीप्रसाद मरता मर जाएगा, लेकिन अपने कलेक्‍शन को हाथ नहीं लगाने देगा। आपके सामने केवल एक ही रास्ता था, कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। जब मूर्ति चोरी ही हो जाएगी तो बूढ़ा क्या सकेगा, और इंश्योसेंस से 30 करोड़ भी मिलेंगे, जो काफी होंगे। लेकिन आप भूल गईं कि नटराज को छोड़कर नंदी वही चुरा सकता है, जिसे इंश्योसेंस स्टेटस का पता हो।”
    “शटअप इंस्पेक्टर!” देवीप्रसाद चीखा, और उसे खांसी का दौरा पड़ गया। मालविका अंदर गई और उसके लिए इनहेलर ले आई, कहा “‘शांत हो जाइए, आप शांत हो जाइए।”
    “मैं ठीक हूँ…” देवीप्रसाद ने मुँह में इनहेलर लगाकर एक-दो लंबी साँस भरी। कुछ क्षण रुककर धीमी आवाज़ में कहा, “मैं ठीक हूँ… । इंस्पेक्टर… क्‍या नाम है तुम्हारा… अनिल शर्मा… यही है तुम्हारी तहकीकात? यही तरीका है मुजरिम को पकड़ने का? जिसने रिपोर्ट की, उसे ही थाने में डाल दिया, और लग गए मुजरिम साबित करने… क्योंकि असली चोर को पकड़ने में मशक्कत है, जाँमारी करनी पड़ेगी… क्‍यों? सही कह रहा हूँ न।
    “मिसाल के तौर पर यही नंदी की बात लो…, चूँकि वह मेरे घर से गायब हुआ है… आपकी तहकीकात का तरीका यही कहता है न कि उस पर शक करो जिसके पास चुराने का मौका है… जिसे उस चोरी से फायदा होने वाला है। तो साहब, वह मेरी मिल्कियत है, मेरे पजेशन में है, तो जितना मौका मुझे हासिल है, उतना दुनिया में किसी को नहीं, तो क्या इससे आप मुझ पर शक करेंगे? आपकी तहकीकात कहती है कि चोरी से लाभ मुझे मिलने की संभावना है, लेकिन यूँ तो लाभ मिलने की कुछ न कुछ संभावना हर किसी को है… मिसाल के तौर पर यदि आपने.. जी हाँ.. आपने चोरी की है, तो तीस लाख के लाभार्थी आप हुए न… । इस लिहाज से यहाँ मौजूद आदमी चोर हो सकता है। वैसे तो हर आदमी पैसे का ख्वाहिशमंद होता है, तो क्या उन्हें हर चोरी या गुनाह के लिए संदिग्‍ध ठहराना उचित होगा?
    “तुम मालविका के बारे में जानते ही क्या हो? उसने मुझे उस समय सहारा दिया जब मैं अपनी जिंदगी को लेकर नाउम्मीद हो चुका था। वह मेरे लिए क्या मायने रखती है, मुझे किसी से बताने की जरूरत नहीं है। लेकिन तुम नहीं समझोगे… तुम्हारे लिए बूढ़ा मतलब हमेशा हवस का मारा और औरत हमेशा लालची और धोखेबाज होती है। शायद तुम्‍हें यही मानने की ट्रेनिंग दी गई है। प्‍यार, त्‍याग, सेवा, वफा और कमिटमेंट जैसे लफ़्जों से तुम्हारा क्या वास्ता? जिस दिन अपनी ट्रेनिंग में इन लफ़्जों को शामिल कर लोगे, उस दिन लोगों की नजरों में पुलिस की छवि बदल जाएगी।
    “तो… अब आप ही बताएँ.. कौन चोर हो सकता है….. हमें कैसे तहकीकात करनी चाहिए?” अशोक शर्मा हड़बड़ाया।
    “यही तो मैं समझा रहा हूँ, कि चोर वह नहीं जिसे मौका हासिल है या जिसे फायदा हो सकता है, बल्कि वह होता है जिसने सचमुच चोरी की है। जाओ, बिल्डिंग का सीसीटीवी देखो… पड़ोसियों से पूछताछ करो। एंटीक बाजार में अपने जासूस तैनात करो। मुखबिरों को एलर्ट करो। बेशक तलाशी लो, बरामदगी करो। यदि इसमें मेरी या मेरी पत्‍नी के इनवॉल्‍वमेंट का सबूत मिले, तो सबूत के साथ बात करो। यूँ ड्राइंगरूम में बैठकर अटकलबाजी कर केस सॉल्‍व करने का दावा न करो। और हाँ, पुलिस को फोन कर बुलाने वाला व्‍यक्ति पीड़ि‍त होता है, दया का मरहम चाहता है, उसके साथ सहानुभूति और विश्वास के साथ पेश आओगे तो तहकीकात जरूर कामयाब होगी। और हाँ, अपना जनरल नॉलेज अपडेट कर लो। भले ही झारखंड राज्‍य 2000 में बना, पर इस खान बहुल इलाके को बहुत पहले से झारखंड के नाम से जाना जाता है, इस नाम के आधार पर झारखंड पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा काफी अरसे से अपनी राजनीति करती आ रही हैं।”
    बाहर आकर धर्मपाल ने अनिल शर्मा से पूछा, “सर, ये बूढ़ा क्या कह गया?”
    “कह रहा कि यह केस इतनी आसानी से सॉल्‍व नहीं होने का… भगवान नंदी हमारी परेड करवाने पर तुले हैं। हो सकता है शहर के अन्‍य एंटीक जानकारों की मदद लेनी पड़े। फिलहाल मैं सुबह सर्च वारंट लेकर आता हूँ। तब तक तू इस फ़्लैट पर नजर रखने का इंतजाम कर। हम इतने जल्‍दी सुधर थोड़े ही सकते हैं।”
    “बेहतर जनाब।” धर्मपाल ने कहा, और दोनों हँस पड़े।

    Reply

  10. ऋषभ कुर्मी
    April 9, 2017 @ 6:31 pm

    मालविका सपाट अंदाज़ में पूछती है, “आप क्या कहना चाहते हैं? चोर मिल गया? कौन है वो?”
    सभी लोग उत्सुकता से अनिल शर्मा की तरफ देखने लगते हैं! सस्पेंस बनाते हुए अनिल शर्मा कुछ देर टहलते हुए मुस्कराता है और फिर बताना शुरू करता है!
    ” देखा जाए तो किसी को भी लगेगा राजेश माखीजा के लिए एक 6 इंच की मूर्ति गायब करना कोई बड़ी बात नहीं, जबकि मालविका जी के अनुसार दरवाज़ा खुला था और वह अंदर चली गयी थीं। लेकिन रात के एक बजे यह चूक कुछ गैर मामूली जान पड़ती है! नटराज की मूर्ति महंगी थी लेकिन उसको छोड़कर नंदी की मूर्ति चोरी हुई जिसका इंश्योरेंस 30 करोड़ का था! चोर को यह बात कैसे मालूम! और एक डिलीवरी बॉय कैसे जानता था कि घर में लापरवाही से पड़ी एक मूर्ति एंटीक पीस है जो की मालविका जी के शब्दों में किसी जानकार व्यक्ति को ही मालूम हो सकता था। इससे आगे देखें तो रात के 2 बजे के आसपास आये हम लोग जब अंदर घुसे तो चमचमाते फर्श पर पैर के निशान पड़ गए। इससे साफ होता है कि राजेश अंदर नहीं आया है! मालविका जी के अनुसार आजकल घर में इनके और इनके पति के अलावा कोई और नहीं आता जाता! इससे स्पष्ट है कि यह चोरी मालविका जी ने 30 करोड़ के लालच में स्वयँ की है।”

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