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सरकारी दफ्तर का गणित

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“भाई ये बिजली के गलत बिल कौन साहब ठीक करते हैं ?”
“क्या काम है ?”
“मैं एक किराए के कमरे में रहता हूँ ।कमरे में बिजली के नाम पर एक पंखा और एक बल्ब है| इन दो चीजों का बिल इस महीने ‘ दस हज़ार ‘ आया ! इसी सिलसिले में साहब से मिलना है।”
चपरासी ने उसे सुधीर साहब के पास  भेजा।
” साहब मेरा बिजली का बिल बहुत ज्यादा  आया है,इसे कृपया ठीक कर दीजिए।”
साहब ने सिर से पांव तक दीनू को देखा !
“जितनी जलाते हो उतना ही आएगा न !”
” साहब ,एक पंखे,बल्ब का दस हज़ार ?”
” हाँ ,तो खाना बिजली के हीटर पर पकाते होंगे ? तुम  लोग कटिया डाल बिजली की चोरी करते हो| इस बार कटिया सही से डली न होगी, तो ज्यादा बिल आ गया।”
” साहब, मैं कोई कटिया न डालता। साथ ही खाना भी ढाबे पर खाता हूँ ,कमरे में नहीं पकाता।”
” अरे जाओ,जो आ गया वो तो देना  होगा ।”

 

दीनू हैरान,परेशान खड़ा था। तभी  सुधीर साहब ने एक आदमी को आवाज़ दी :
“  रमेश, इधर आना ।”
“हाँ बोलो सुधीर।”
” यार घर नया बनवाया है, ऊपर की मंज़िल पर तीन नए ए सी लगवाए हैं, पहले के भी नीचे की मंज़िल पर चल रहे हैं। बाकी बिजली का सामान भी चलता है। तुम देख लेना मेरा बिल,मेरे एरिया की रीडिंग तो तुम ही करते हो न। 500 -1000 के बीच ही रखना ! ” सुधीर ने आंख मारते हुए रमेश से कहा।
रमेश ने भी उसी अंदाज़ में जवाब दिया -” तुम टेंशन न लो ,मैं सब एडजस्ट कर दूंगा। ”
“चल फिर रात को  ‘अपनी तरह’ की पार्टी में मिलते हैं।” दोनों ज़ोर से हँसने  लगे ।

दीनू एक कोने में खड़ा- एक कमरे के ‘एक बल्ब,  पंखे के दस हज़ार औऱ एक दो मंजिला बड़े मकान के तीन-चार ए सी व बाकी लाइट का  500 -1000’ -ये गणित समझने की कोशिश कर रहा था

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