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खजूर की छाँव     

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             “रधिया चल कपड़े धो।”

             “माँ ,मैं बहुत थक गई हूं ,दर्द भी बहुत हो रहा, सुबह से काम कर रही हूं।”

            “अरी तो क्या काम न करेगी? चल उठ।”

            “कपड़े धो कर रसोई में पड़ा साग काट देना।”

         रधिया , माँ के इस व्यवहार से बहुत आहत थी। उसकी क्या गलती है। खेत  में बापू को खाना देने गयी,आते समय दबंगों ने पकड़ लिया। उनकी दरिंदगी का शिकार हुई। 3 दिन घायल अवस्था में अस्पताल रही। पुलिस आयी। कुछ दिन बाद दबंग  तो छूट गए पर रधिया हमेशा के लिए कैद हो गयी। अब रधिया 7 माह की गर्भवती है। इतनी  छोटी की 4 महीने तक तो उसे गर्भ का पता ही न चला !

          माँ तो जैसे उसे ही दोषी मानती है।  बापू  नफरत से देखते  हैं। घर से बाहर  जाने की मनाही है।लोग बातें बनाते  हैं।

         कपड़े धो कर रधिया रसोई में गयी। साग काटते हुए तेज दर्द हुआ। रधिया जोर से चिल्लाई। माँ ने आकर देखा -समझ गयी प्रसव पीड़ा है। दौड़ कर दाई काकी को बुलाया।

         “काकी अभी तो सातवां महीना ही है!”

          “तू पानी गर्म कर,इतना काम  कराया लड़की से ! ये तो  होना ही था।” काकी  ने रधिया की हालत को  देख कर कहा।

          रधिया दर्द से तड़प रही थी।

          ” रधिया ज़ोर लगा। बस बस हो गया| “

           एक तेज दर्द के साथ रधिया निढाल हो गयी।

          ” रधिया की माँ , बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ है। ..कहानी खत्म!”

            कमरे में सन्नाटा पसरा है। रधिया की आंख के कोने से आंसू लुढ़क कर गालों पर ठहरे हैं ! पर माँ के चेहरे पर  असीम सन्तोष है !

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