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उतरन -वाजिदा तबस्सुम की उर्दू कहानी

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वाजिदा तबस्सुम उर्दू की मशहूर अफसानानिगार रही हैं. 1975 में लिखी उतरन उनकी सर्वाधिक चर्चित कहानी है. अंग्रेजी में ‘Cast-Offs’ या ‘Hand-Me Downs के नाम से अनूदित इस कहानी का कई भारतीय भाषाओं में भी अनुवाद हुआ. टेलीविजन पर इसी नाम के धारावाहिक के अतिरिक्त मीरा नायर की चर्चित फिल्म ‘Kama Sutra: A Tale of Love’ की मूल प्रेरणा भी यही कहानी है.

“निक्को अल्ला, मेरे को बहोत शरम लगती है.”

“एओ, इसमें शरम की क्या बात है? मैं नई उतारी क्या अपने कपड़े?”

“ऊं…..” चमकी शरमाई !

“अब उतारती है कि बोलूं अन्ना बी को?” शहजादी पाशा, जिसकी रग-रग में हुक्म चलाने की आदत रमी हुई थी, चिल्ला कर बोली. चमकी ने कुछ डरते-डरते, कुछ शरमाते-शरमाते अपने छोटे-छोटे हाथों से पहले तो अपना कुरता उतारा, फिर पायजामा ….फिर शहजादी पाशा के हुक्म पर झाग भरे टब में उसके साथ कूद पड़ी.

दोनों नहा चुकीं तो शहजादी पाशा ऐसी मुहब्बत से, जिसमें अभिमान और स्वामित्व की गहरी छाप थी, मुस्कुरा कर बोली, “होर तू यह बता कि अब तू कपड़े कौन से पेन रई?” “कपड़े?” शहजादी पाशा हैरानी से चिल्ला कर नाक सिकोड़ते हुए बोली, “इत्ते गंदे, बदबू वाले? फिर पानी में नहाने से नहाने का फायदा?”

चमकी ने जवाब देने की बजाय उल्टा एक सवाल जड़ दिया, “होर आप क्या पैन रहे, पाशा?” “मैं?” शहजादी पाशा बड़े संतोष और गर्व से बोली, “वह मेरी बिस्मिल्लाह के वक्त चमक-चमक का जोड़ा मेरी दादी माँ बनाए थे, वोइच, मगर तूने काये को पूछी?”

चमकी क्षण भर के लिए सोच में पड़ गई. फिर हँस कर बोली, “मैं सोच रई थी…..” शहजादी पाशा ने आश्चर्यचकित होकर पूछा, “क्या?” कि एक-दम उधर से अन्ना बी की तेज चिंघाड़ सुनाई दी, “हो पाशा ! ये मेरे को हमाम में से भगाए को तुम इस उजाड़-मारी चोट्टी के साथ क्या बातें मारने ले बैठीं…? जलदी निकलो, नई तो बी पाशा को अब्बी जा को बोलतीऊं.” अपनी सोची हुई बात चमकी ने जल्दी से कह सुनाई, “पाशा, मैं सोच रई थी कि कब्बी आप होर मैं ‘ओढ़नी बदल’ बहनां बन गए तो आप के कपड़े मैं भी पहन ले सकती ना?”

“मेरे कपड़े? तेरा मतलब है कि वो सारे कपड़े जो मेरे सन्दूकां भर-भर को रखे पड़े हैं !”

उत्तर में चमकी ने जरा डर कर सिर हिलाया. शहजादी पाशा हँसते-हँसते दोहरी हो गई. “एओ, कितनी बेवकूफ छोकरी है . आगे तू तो नौकरानी है, तू तो मेरी उतरन पहनती है. होर उम्र भर उतरन ही पहनेगी.”

फिर शहजादी पाशा ने अपार-प्यार से, जिसमें अभिमान और गर्व अधिक, निष्कपटता कम थी, अपना अभी-अभी का नहाने के लिए उतारा जोड़ा चमकी की ओर उछाल दिया, “ये ले, यह उतरन पहन ले. मेरे पास तो बहोत कपड़े हैं.”

चमकी को क्रोध आ गया, “मैं काय को पहनूं, आप पहनो न मेरा जोड़ा.” उसने अपने मैले जोड़े की ओर इशारा किया. शहजादी पाशा गुस्से से हुंकारी, “अन्ना बी, अन्ना बी….”

अन्ना बी ने जोर से दरवाज़े को भड़भड़ाया और दरवाज़ा, जो सिर्फ हल्का सा भिड़ा हुआ था, पाटों-पाट खुल गया, “अच्छा, तो आप दोनों साहिबान अभी तक नंगेइच खड़े वे हैं…! अन्ना बी नाक पर ऊँगली रख कर बनावटी गुस्से से बोलीं.

शहजादी पाशा ने झट स्टैंड पर टंगा हुआ नरम-नरम गुलाबी तौलिया उठा कर, अपने जिस्म के गिर्द लपेट दिया. चमकी यूं ही खड़ी रही. अन्ना बी ने अपनी बेटी की ओर ज़रा गुस्से से देखा, “होर तू पाशा लोगां के हमाम में काये कू पानी नहाने को आन तुरी?”

“ये इन्नो शहजादी पाशा ने बोले कि तू भी मेरे साथ पानी नहा.”

अन्ना बी ने डरते-डरते इधर-उधर देखा कि कोई देख न रहा हो. फिर जल्दी से उसे हमाम से बाहर खींच कर बोलीं, “जल्दी से जा, नौकरखाने में……नई तो सर्दी-वर्दी लग गई तो मरेगी . पेन मेरे कपड़े…” वह शरम से जरा सिमटी.

“अब ये चिक्कट गोंद कपड़े निक्को पेन. वह लाल पेटी में शहज़ादी पाशा परसों अपना कुरता-पायजामा दिए थे, वह जाकर पेन ले.”

वहीँ खड़ी-खड़ी वह सात वर्ष की नन्हीं सी जान बड़ी गहरी सोच के साथ रुक-रुक कर बोली, “अम्मनी, जब मैं होर शहजादी पाशा एक बराबर के हैं तो उन्नो मेरे उतरन क्यों नईं पहने?”

“ठहर जरा, मैं मम्मा को जाकर बोलतीऊं कि चमकी मेरे को ऐसा बोली….”

लेकिन अन्ना बी ने डरकर उसे गोद में उठा लिया. “आग्गे पाशा उन्ने तो छिनाल पागल होली गई है. ऐसे दीवानी को बातां काये को अपने मम्मा से बोलते आप? उसके संगात खेलना न बात करना. चुप उसके नाम पर जूती मार देओ आप.”

शहजादी पाशा को कपड़े पहना कर, कंघी-चोटी करके, खाना-वाना खिला कर, जब सारे कामों से निश्चिंत होकर, अन्ना बी अपने कमरे में पहुँची तो देखा कि चमकी अभी तक नंगा झाड़ बनी खड़ी है. आव देखा न ताव, उन्होंने अपनी बेटी को धुनकना शुरू कर दिया.

“जिसका खाती, उसी से लडाइयां मोल लेती ! छिनाल घोड़ी ! अबी-कबी बड़े सरकार निकाल बाहर कर दिए तो किधर जाएंगे? इत्ते नखरे !”

अन्ना बी के हिसाब से तो यह बड़े भाग्य की बात थी कि वह शहजादी पाशा को दूध पिलाने के लिए रखी गई थी. उनके खाने-पीने का स्तर तो बेशक वही था, जो बेगमों का था कि भई वह नवाब साहिब की इकलौती बच्ची को दूध पिलाती थी. कपड़ा-लत्ता भी बेहिसाब था, कि दूध पिलाने वाली के लिए साफ़-सुथरा रहना अनिवार्य था. और सबसे ज्यादा मजे तो ये थे कि उनकी अपनी बच्ची को, शहजादी पाशा की बेहिसाब उतरन मिलती थी. कपड़े-लत्ते मिलने की बात तो तय थी ! हद यह कि अक्सर चांदी के गहने और खिलौने तक भी उतरन में दिए जाते थे. इधर वह थी कि जब से जरा-जरा होश संभाल रही थी, बस यही जिद किए जाती थी कि मैं बी पाशा की उतरन क्यों पहनूं ? कभी-कभार तो आईना देख कर बड़ी सूझ-बूझ के साथ कहती, “अम्मनी, मैं तो बी पाशा से भी अधिक सुंदर हूं ना ! फिर तू उन्हें मेरी उतरन पहना ना?”

अन्ना बी हर घड़ी टोकती थी, “बड़े लोग तो बड़े लोग ही ठहरे. अगर किसी ने सुन-गुन पा ली कि मुई अन्ना, ना असल की बेटी ऐसे-ऐसे बोल बोलती है, तो नाक-चोटी काट कर बाहर न कर देंगे?” वैसे भी दूध पिलाने का ज़माना तो अरसा हुआ, बीत गया था. वह तो ड्योढ़ी की परंपरा कहिए, कि अन्ना लोगों की मरे बाद ही छुट्टी की जाती थी. लेकिन दोष भी क्षमा किए जाने योग्य हो, तो ही क्षमा मिलती है. ऐसा भी क्या? अन्ना बी ने चमकी के कान मरोड़ कर उसे समझाया, “ आगे से कुछ बोली तो याद रख! तेरे कू उमर भर बी पाशा की उतरन पहनना है. समझी कि नईं ! गधे की औल्याद!”

गधे की औलाद ने उस समय जुबान तो सी ली, लेकिन मन में लावा पकता ही रहा.

तेरह साल की हुई तो शहजादी पाशा की, पहली बार नमाजे कजा हुई. आठवें दिन गुलपाशी हुई तो ऐसा जरी वाला झिलमिलाता जोड़ा अम्मा ने सिलवाया कि आँख ठहरती नहीं थी. जगह-जगह सोने के घुंघरुओं की जोड़ियाँ टंकवाई कि जब भी पाशा चलती तो ‘छन-छन’ पाजेबें सी बजतीं. ड्योढ़ी की प्रथा के अनुसार वह बेहद बढ़िया कीमती जोड़ा भी उतरन में दे दिया गया. अन्ना बी ख़ुशी-ख़ुशी वे सौगातें लेकर पहुंची, तो चमकी जो अपनी आयु से कहीं अधिक समझदार और स्वाभिमानी हो चुकी थी, दुःख से बोली, “अम्मनी, मजबूरी नाते से लेना होर बात है, लेकिन आप ऐसी चीज़ां लेकर खुश मत हुआ करो.”

“अग्गे बेटा !” वह फुसफुसा कर बोली, “यह जोड़ा अगर बिकाने को भी बैठे, तो दो सौ रूपये तो कहीं नईं गए. अपन लोगां नसीबे वाले हैं कि ऐसी ड्योढ़ी में पड़े.”

“अम्मनी,” चमकी ने बड़ी हसरत से कहा, “मेरा जी बोलता कि मैं भी कभी बी पाशा को उतरन दूं !”

अन्ना बी ने सिर पीट लिया. “अग्गे, तू भी जवान हो गई है. जरा अख्ल पकड़. ऐसी-वैसी बातां कोई सुन लिया, तो मैं क्या करूँगी? मां, जरा मेरे बुड्ढे जूंड़े पर रहम कर.”

चमकी माँ को रोता देख कर खामोश रह गई.

मौलवी साहब ने दोनों को साथ ही साथ कुरान शरीफ और उर्दू कायदा शुरू कराया था. बी पाशा ने कम और चमकी ने अधिक तेजी दिखाई. दोनों ने जब पहली बार कुरान का पाठ समाप्त किया था तो बड़ी पाशा ने उपकार के तौर पर, चमकी को भी एक हल्के कपड़े का नया जोड़ा सिलवा दिया था. चाहे बाद में उसे बी पाशा का भारी जोड़ा भी उतरन में मिल गया था, लेकिन उसे अपना वह जोड़ा जान से भी ज़्यादा प्यारा था. इस जोड़े से उसे किसी प्रकार के अपमान का अनुभव नहीं होता था. हल्के जाफरानी रंग का जोड़ा……जो कितने ही सारे जगमगाते, चमचम करते जोड़ों से बढ़ कर था.

अब जब कि शहजादी पाशा ज़रुरत भर पढ़-लिख भी चुकी थीं, जवान भी हो चुकी थीं, उनका घर बसाने की चिंता की जा रही थी. ड्योढ़ी सुनारों, दरजियों , व्यापारियों का ठिकाना बन चुकी थी. चमकी यही सोचे जाती कि वह तो शादी के इतने बड़े हंगामे के दिन भी अपना वही जोड़ा पहनेगी जो किसी की उतरन नहीं था.

बड़ी पाशा जो बड़ी दयालु औरत थीं, हमेशा अपने नौकरों का अपनी औलाद ही की तरह ध्यान रखती थीं. इसलिए शहजादी पाशा के साथ वह चमकी के विवाह के लिए भी उतनी ही चिंतातुर थीं. आखिर नवाब साहिब से कह-सुन कर उन्होंने एक योग्य लड़का चमकी के लिए तलाश कर ही लिया. सोचा कि शहजादी पाशा की शादी के बाद इसी झोड़-झुमके में चमकी का भी निकाह पढ़ दिया जाए.

उस दिन जब शहजादी पाशा के निकाह को केवल एक दिन रह गया था और ड्योढ़ी मेहमानों से ठसाठस भरी पड़ी थी और लड़कियों का टिड्डी दल सारी ड्योढ़ी को सिर पर उठाए हुए था, अपनी सखियों के झुरमुट में बैठी हुई शहजादी पाशा, पैरों में मेहंदी लगवाए चमकी से कहने लगी, “तू ससुराल जाएगी तो तेरे पैरों में मेहंदी लगाऊँगी.”

“एओ, खुदा न करे!” अन्ना बी ने प्यार से कहा, “इसके पांव आप के दुश्मनां छूएं. आप ऐसा बोले, सो बस है. बस इतनी दुआ करना पाशा कि आप के दूल्हा मियाँ जैसा शरीफ दूल्हा इसका निकल जाए.”

“मगर इसकी शादी कब हो रई जी…..?” कोई चंचल लड़की पूछ बैठी.

शहजादी पाशा वही बचपन वाली अभिमान-भरी हंसी हँस कर बोली, “मेरी इत्ती सारी उतरन निकलेगी, तो इसका दहेज़ तैयार समझो.”

उतरन……..उतरन……उतरन……..कई हजार सुइयों की बारीक-बारीक नोकें जैसे उसके दिल को बेंध गईं. वह आँसू पीते हुए अपने कमरे में चुपचाप पड़ गई. संध्या होते ही लड़कियों ने फिर ढोलक संभाली. एक से एक वाहियात गाना गाया जा रहा था. पिछली रात रतजगा हुआ था. आज फिर होने वाला है. परली तरफ़ सहन में ढेरों चूल्हे जलाए बावर्ची लोग भांति-भांति के पकवान तैयार करने में व्यस्त थे. ड्योढ़ी पर रात ही से दिन का गुमान हो रहा था.

चमकी की रोती हुई सुंदरता संतरी जोड़े में और भी खिल उठी. यह जोड़ा वह जोड़ा है, जो उसे हीन भावना के पाताल से उठा कर आकाश की ऊँचाइयों पर बिठा देता था. यह जोड़ा किसी की उतरन नहीं था. नए कपड़ों से सिला हुआ यह नया जोड़ा, जो उसे जीवन भर में बस एक ही बार नसीब हुआ था. वरना सारी उमर तो शहजादी पाशा की उतरन पहनते ही गुजरी थी. और चूंकि दहेज़ भी सारे का सारा उनकी उतरन का ही बना था, इसलिए शेष जीवन भी उसे उतरन इस्तेमाल करनी होगी. लेकिन बी पाशा, एक सैयदजादी और कहाँ तक पहुँच सकती है, यह तुम भी देख लेना. तुम एक से एक पुरानी चीज़ मुझे इस्तेमाल करने को दिए न ! अब तुम देखना….मलीदे का थाल उठाए वह दूल्हा वालों की कोठी में प्रविष्ट हुई. हर तरफ़ दीपमाला हो रही थी. यहाँ भी वही चहल-पहल थी, जो दुल्हन वालों के महल में थी. सुबह निकाह जो पढ़ा जाना था.

इतने बड़े हंगामे और इतनी बड़ी कोठी में, किसी ने उसकी ओर ध्यान ही नहीं दिया. पूछती-पूछती वह सीधी दूल्हा मियां के कमरे में जा पहुँची. हल्दी-मेहंदी की रीत-रस्मों से थके-थकाए दूल्हा मियां अपनी मसहरी पर लेटे हुए थे. परदा हिला, तो वह मुड़े और देखते के देखते रह गए.

घुटनों तक लंबा जाफरानी कुरता, कसी-कसी पिंडलियों पर मढ़ा हुआ तंग पायजामा, हल्की-हल्की कामदानी का कढ़ा हुआ जाफरानी दुपट्टा. रोई-रोई भीगी-भीगी गुलाबी आँखें, छोटी आस्तीनों वाले कुरते में से झांकती कोमल-कोमल गदराई बांहें, बालों में मोतिए के गजरे पिरोए हुए, होठों पर एक कातिल सी मुस्कान! यह सब नया नहीं था, लेकिन एक पुरुष जिसकी पिछली कई रातें किसी स्त्री की कल्पना में बीती हों, शादी से एक रात पहले बहुत खतरनाक हो जाता है, चाहे वह कैसा ही शरीफ हो.

रात, जो गुनाह का निमंत्रण होती है.

तन्हाई, जो गुनाहों की हिम्मत बढ़ाती है. चमकी ने उन्हें यूं देखा कि वह जगह-जगह से टूट गए. चमकी जान-बूझ कर मुंह मोड़ कर खड़ी हो गई. वह तिलमिलाए से अपनी जगह से उठे और ठीक उसी के सामने खड़े हो गए. आँखों के कोनों से चमकी ने उन्हें यूं देखा कि वह ढेर हो गए.

“तुम्हारा नाम?” उन्होंने थूक निगल कर कहा.

“चमकी !” और एक चमकीली हंसी ने उसके प्यारे-प्यारे चेहरे को चांद कर दिया.

“सचमुच तुममें जो चमक है, उसका तकाजा यही था कि तुम्हारा नाम चमकी होता.” उन्होंने डरते-डरते अपना हाथ उसके कन्धों पर रख दिया. खालिस मरदाने लहजे में नहीं जो किसी लड़की को पटाने से पहले ख्वामखाह इधर-उधर की हांकते हैं, बल्कि कांपते हुए हाथ कंधे से हटा कर उसके हाथ को पकड़ते हुए बोले, “यह थाल में क्या है?”

चमकी ने जान-बूझ कर उनकी हिम्मत बढ़ाई, “आप के वास्ते मलीदा लाई हूँ. रतजगा था ना, रात को.” और उसने बिना तलवार के उन्हें घायल कर दिया. “मुँह मीठा करने को.” वह मुस्कुराई.

“हम मलीदे-वलीदे से मुँह मीठा करने के कायल नहीं हैं. हम तो….हाँ……” और उन्होंने होठों के शहद से मुंह मीठा करने को होंठ बढ़ा दिए और चमकी उनकी बाहों में ढेर हो गई. उनकी पवित्रता लूटने…स्वयं लुटने……उन्हें लूटने के लिए.

विदा के दूसरे दिन ड्योढ़ी की प्रथा के अनुसार जब शहजादी पाशा अपनी उतरन, अपना सुहाग का जोड़ा अपनी अन्ना, अपनी खिलाई की बिटिया को देने गई, तो चमकी ने मुस्कुरा कर कहा, “पाशा, मैं जिंदगी भर आपकी उतरन इस्तेमाल करती आई, मगर अब आप भी….!” और पागलों की तरह हँसने लगी, “मेरी इस्तेमाल कर ली चीज़ अब जिंदगी भर आप भी…” उसकी हंसी रूकती ही नहीं थी.

सब लोग यही समझे कि बचपन के साथ खेली सखी की जुदाई के गम ने, कुछ देर के लिए चमकी को पागल कर दिया है!

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Hareesh Gupta

अनोखा बदला। बढ़िया कहानी है।

Kbc

वाह, बहुत खूब।