हिन्दी का श्रेष्ठ और कालजयी साहित्य
बीस साल बाद मेरे चेहरे में वे आंखें वापस लौट आई हैं जिनसे मैंने पहली बार जंगल देखा है : हरे रंग का एक ठोस सैलाब जिसमें सभी पेड डूब गए हैं। और जहां हर चेतावनी खतरे को टालने के बाद एक हरी आंख बनकर रह गई है। बीस साल बाद मैं अपने आप से […]
सन् 1908 ई. की बात है। दिसंबर का आखीर या जनवरी का प्रारंभ होगा। चिल्ला जाड़ा पड़ रहा था। दो-चार दिन पूर्व कुछ बूँदा-बाँदी हो गई थी, इसलिए शीत की भयंकरता और भी बढ़ गई थी। सायंकाल के साढ़े तीन या चार बजे होंगे। कई साथियों के साथ मैं झरबेरी के बेर तोड़-तोड़कर खा रहा था कि गाँव के पास से एक आदमी […]
गर्मी के दिन थे। बादशाह ने उसी फाल्गुन में सलीमा से नई शादी की थी। सल्तनत के सब झंझटों से दूर रहकर नई दुलहिन के साथ प्रेम और आनन्द की कलोलें करने, वह सलीमा को लेकर कश्मीर के दौलतखाने में चले आए थे। रात दूध में नहा रही थी। दूर के पहाड़ों की चोटियाँ बर्फ […]
अप्रैल के उत्तरार्द्ध की एक रात का पिछला पहर। खुला आकाश। वास्तव में खुला आकाश, क्योंकि आकाश के जिस अंश में धूल या धुन्ध होती है वह तो हमारे नीचे है। और धूल उसमें है भी नहीं, हलकी-सी वसन्ती धुन्ध ही है, बहुत बारीक धुनी हुई रुई की-सी: यह ऊपर आकाश नहीं, है रूपहीन आलोक-मात्र। […]
पिछले पंद्रह महीने से दंड-जुर्माने के पैसे जमा करके महतो टोली के पंचों ने पेट्रोमेक्स खरीदा है इस बार, रामनवमी के मेले में | गाँव में सब मिलाकर आठ पंचायतें हैं | हरेक जाति की अलग अलग ‘सभाचट्टी ‘ है | सभी पंचायतों में दरी, जाजिम , सतरंजी और पेट्रोमेक्स हैं – पेट्रोमेक्स, जिसे गाँव […]
प्रेमचंद जहाँ कथा साहित्य को सामाजिक समस्याओं से लड़ने के अस्त्र के रूप में विकसित करने का प्रयत्न कर रहे थे, वहीं उन्हीं के समकालीन जैनेन्द्र इसे समाज से व्यक्ति की ओर, बाहर से भीतर की ओर ले जा रहे थे. जैनेन्द्र, अज्ञेय और इलाचन्द्र जोशी जैसे कथाकारों ने व्यक्ति मन की गहराइयों की छानबीन […]