एक दिन एक दोस्त ने इस्लामिक कांसेप्ट को लेकर सवाल पूछा था, कि यह बात समझ में नहीं आती कि मुसलमानों को दुनिया में तो शराब पीना हराम करार दे दिया और जन्नत में शराब की नदियां देने का वादा किया गया, दुनिया में तो जिनाकारी एक गुनाह बना दी और जन्नत में हूरों के […]
अबूझ को बूझने की प्रक्रिया में, संगठित होते समाजों की बैक बोन, धर्म के रूप में स्थापित हुई थी, उन्होंने कुदरती घटनाओं के पीछे ईश्वर के अस्तित्व की अवधारणा दी, शरीर को चलायमान रखने वाले कारक के रूप में आत्मा का कांसेप्ट खड़ा किया और इसे लेकर तरह-तरह के लुभावने-डरावने मिथक और कहानियां खड़ी की— […]
1. अभिनिषेध “तू यहाँ कैसे आई?” कमरे में नयी लड़की को देखकर शब्बो ने पूछा। लड़की ने कोई जवाब नहीं दिया। “अरी बता भी दे…रहना तो हमारे साथ ही है…।” “क्यों रहना है तुम्हारे साथ? मैं नहीं रहूँगी यहाँ।” आँखें तरेर कर लड़की तमक कर बोली। “हु..हु…हु..।यहाँ नहीं रहेगी तो क्या अपने घर रहेगी?” अब […]
एक दिन मासा गाँव आया था। उसने सारे गाँव वालों को बुलाया। आज गाँव में जनताना अदालत थी। आसपास के गाँव जैसे जुड़गुम, वरदली, उल्लूर इत्यादि से भी लोग आए थे। कुछ अपनी मर्ज़ी से आये थे और कुछ मासा के खौफ से। पुराने बरगद के पेड़ के नीचे बैनर पर तेलुगु और इंग्लिश में […]
जब भी वह उसके पास दिल्ली आती तो पूरा घर व्यवस्थित करने में उसे कुछ दिन लग जाते। पिछले कुछ समय से उसे घर में कुछ ऐसी वस्तुएँ भी मिल जाती थीं, जिससे उसका दिल तेज धड़क जाता था। कभी-कभी उसने टोका तो राजीव ने उसको घुड़क दिया। उसके दोस्त, उनके परिवार, उसके अपने घर […]
हॉस्टल में सुबह ही एक आकाशवाणी से होती थी- “जागो वत्स, जीवन रेस है। दौड़ो, क्योंकि तुम प्रतिस्पर्धा में हो।” 350 लड़कियाँ और सीमित संसाधन। हर एक मिनट में “हाउ लॉंग?” की आवाज़ बाथरूम एरिया को सजीव बनाए रखती थी। ‘आय विल टेक माइ टाइम।’ का जवाब प्रतिस्पर्धा के निर्मम और आक्रामक होने का एहसास […]
जल्दी जयपुर पहुँचने के चक्कर में जवाद इब्राहिम ने मुख्य मार्ग से न जाकर, जंगल से हो के जाने वाला ये छोटा रास्ता चुना था। हालाँकि उसकी पत्नी रुख़सार ने एतराज़ भी किया था। शाम का धुँधलका हो रहा था कि अचानक उसकी कार घुर्र-घुर्र कर बंद हो गयी। बस रुख़सार ने बड़बड़ाना शुरू कर […]
जाड़े की धुंध भरी घुप्प अंधेरी रात से ज्यादा गहरी रात और कोई नहीं होती, आज वैसी ही एक रात थी। ट्रेन रात के ग्यारह बजे की थी। कैलाश अपनी पत्नी और बच्चे को लेकर नौ बजे ही स्टेशन पहुँच गया। काठगोदाम स्टेशन यूँ तो चहल-पहल वाला स्टेशन है, पर जाड़े की रात जब गहरी […]
रुपाली ‘संझा’ के यात्रा वृतांत ‘दिल की खिड़की में टँगा तुर्की’ का एक अंश तकरीबन तीन हजार साल प्राचीन रोमन कालीन शहर! नहीं सिर्फ शहर नहीं…सुप्रसिद्ध पुरातन पत्तन (बंदरगाह) शहर! इस तरह की भौगोलिक स्थिति का मतलब तब किसी शहर के लिए हुआ करता था धन्ना सेठ होना। ये वो जमाना था जब सारा व्यापार […]