नायक
आँगन में वह बास की कुर्सी पर पाँव उठाए बैठा था। अगर कुर्ता-पाजामा न पहले होता तो सामने से आदिम नजर आता। चूँकि शाम हो गयी थी और धुँधलका उतर आया था, उसकी नजर बार-बार आसमान पर जा रही थी। शायद उसे असुविधा हो रही थी। उसने पाँव कुर्सी से नीचे उतार लिये और एक […]